(सुनील सिंह बघेल)रात के 8 बज रहे हैं। डॉ. दिलीप चावड़ा और उनके साथ दो और पीजी स्टूडेंट्स डॉ. हर्ष और डॉ. साकेत, नर्सिंग स्टाफ 12 घंटे की अगली ड्यूटी के लिए तैयार हो रहा है। पहले तो रजिस्टर में एंट्री। मास्क, ग्लव्स तो हॉस्पिटल पहुंचने के पहले ही पहन रखे हैं। सैनिटाइजेशन के बाद पर्सनल प्रोटेक्शन किट (पीपीई) का नया सेट पहनकर तैयार हो रहे हैं। इसमें शामिल है शू कवर, फेस शील्ड, पूरे शरीर को ढंकने वाला गाउन, हर गाउन पर डॉक्टर के फोटो लगी नाम की तख्ती।
रात के 9 बज रहे हैं। एमटीएच अस्पताल से एक फोन आते ही अचानक पूरा स्टाफ हरकत में आ जाता है। खबर है कि एक गंभीर मरीज को यहां शिफ्ट किया जा रहा है। थोड़ी देर में ही सायरन बजाती एम्बुलेंस दरवाजे पर और नर्सिंग स्टाफ ऑक्सीजन लगी स्ट्रेचर के साथ गेट पर तैयार।
एक टीम मरीज के कागज जांच रही है, हिस्ट्री, उसकी हालत समझने में जुटी है। मरीज की पहचान सुनिश्चित कर रही है। पावती देने के बाद एम्बुलेंस रवाना। इसी बीच दूसरी टीम ने मरीज को स्ट्रेचर पर लिटाकर ऑक्सीजन लगा दी है। सीधे आईसीयू में ले जाते हैं।
पीछे-पीछे दौड़ते हुए डॉ. दिलीप चावड़ा पहुंचते हैं। सुनो मरीज को सीवियर डायबिटीज भी है, सुनते ही एक नर्स ने शुगर जांचना शुरू कर दिया। नर्स बोली- इंसुलिन देना पड़ेगा। मरीज सांस नहीं ले पा रहा। ऐसा लग रहा कि अब सांस टूट जाएगी। जल्दी करो.. तत्काल वेंटिलेटर लगाना पड़ेगा। डॉ. चावड़ा मरीज की जांच करते कुछ बोलते हैं।
साथ खड़े डॉ. हर्ष और डॉ. साकेत समझ जाते हैं कि मरीज को इनट्यूबेशन करना पड़ेगा, एनेस्थीसिया के डॉक्टर को बुलाना पड़ेगा। मिनट दर मिनट गुजर रहे हैं, हालत बिगड़ रही है। तभी पहुंच जाते हैं एनेस्थीसिया विशेषज्ञ डॉ. कौशल कबीर। इसी बीच नर्सिंग स्टाफ ने मरीज को ऑक्सीजन, ब्लड प्रेशर नापने के उपकरण लगा दिए हैं।
मॉनीटर पर आड़ी-टेढ़ी लाइनें उभर रही हैं और डॉक्टरों के माथे पर भी। गले में नली डाल दी गई है। वेंटिलेटर ने काम करना शुरू कर दिया है। ऑक्सीजन का स्तर 90 पार कर रहा है। इसी बीच 1 घंटा गुजर चुका है। मॉनीटर पर उभरने वाली रीडिंग थोड़ी राहत दे रही है। इसी बीच एक और ब्लड सैंपल जा चुका है। रात के 2 बज रहे हैं। आईसीयू के बाहर से खबर आती है कि 2 मरीजों को तेज बुखार है। एक को सांस लेने में कुछ दिक्कत भी है। टीम जांच करती है। थोड़ी देर में हालात समझ में आ जाते हैं। वेंटिलेटर की जरूरत नहीं है इसको, लेकिन ऑक्सीजनलगाना पड़ेगी।
नया एक्स-रे भी करवाना पड़ेगा। ऑक्सीजन भी लगाना पड़ेगी, वेंटिलेटर की जरूरत नहीं। सुबह के 4 बज रहे हैं। ड्यूटी डॉक्टर की टीम फिर वेंटिलेटर के उसी मरीज के पास लौट आती है। इनके चेहरे पर थोड़ी राहत है। मरीज के चेहरे पर भी।
सुबह के 6 बज रहे हैं। इसी बीच दो और मरीज वेंटिलेटर पर हैं। उनकी फाइलें भी देखी जा रही हैं। 24 घंटे की रिपोर्ट देखकर डॉक्टर राहत की सांस लेते हैं। उनकी फाइल में कुछ नोट करते हुए कहते हैं दोनों की हालत में सुधार है।
वेंटीलेटर निकाल भी सकते हैं। पर अभी तो हमारे पास खाली वेंटीलेटर हैं। कोई बड़ी इमरजेंसी भी नहीं है। बेहतर है कि आज और वेंटीलेटर पर ही रहने दो। हम कल इनके वेंटीलेटर निकाल सकते हैं। सुबह के 7 बज रहे हैं।
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