
लॉकडाउन में नवजात का मुंह देखने के लिए 47 किमी दूर पैदल महात्मा गांधी अस्पताल पहुंचे पिता का पता चला कि उसके बेटे की तो जन्म के कुछ समय बाद ही मौत हो गई जबकि प्रसव के दौरान ज्यादा खून बह जाने के कारण पत्नी की हालत भी नाजुक है।
दुखभरी यह घटना पंचायत समिति सज्जनगढ़ की ग्राम पंचायत खुंदनीहाला के माल महुड़ी गांव के कल्पेश के साथ घटी।
कल्पेश ने बताया कि उसकी पत्नी 26 वर्षीय किरपा गर्भवती होने के कारण पीहर बिलड़ी पंचायत के सिरामहुड़ी गांव में थी। रविवार सुबह प्रसव पीड़ा होने पर उसे सज्जनगढ़ अस्पताल ले गए, जहां स्थिति ज्यादा खराब होने पर किरपा को बांसवाड़ा एमजी अस्पताल रैफर कर दिया।
निजी वाहन में ला रहे थे कि किरपा की डिलीवरी रास्ते में ही हो गई, ऐसी स्थिति में उसे एमजी अस्पताल लाकर मां बेटे दोनों को भर्ती किया। बेटा होने की सूचना किरपा के पिता ने कल्पेश को सुबह 11 बजे फोन पर दी। इसके बाद कल्पेश आदिवासी, उसके पिता, मां और बड़े पापा यहां वाहन लेकर आना चाहते थे, लेकिन कोरोना संक्रमण के कारण लगे लॉकडाउन में वाहनों की आवाजाही पर पाबंदी के कारण वे पैदल ही घर से बांसवाड़ा के लिए दोपहर 12 बजे निकल गए।
इन चारों ने 47 किमी की दूरी 10 घंटे में पूरी कर रात 10 बजे अस्पताल पहुंचे। जहां गायनिक वार्ड में जाने पर कल्पेश को पता चला कि उसके बेटे की मौत तो जन्म के कुछ समय बाद ही हो गई थी, जबकि ज्यादा खून बह जाने पर पत्नी की हालत नाजुक है।
यह सुनकर कल्पेश फफक फफककर रोने लगा, जिसे साथ में आए लोगों ने ढांढस बंधाया। कल्पेश ने बताया कि रास्ते में लगी चेक पोस्ट पर सख्ती से जांच करते है। मोबाइल भी घर ही छोड़ आया इसलिए बेटे के मरने की खबर उस समय नहीं मिल पाई।
परिवार के सभी लोग खाना, जरूरी सामान और कपड़े लेकर आए है ताकि ज्यादा दिन भर्ती रहने पर किसी प्रकार की समस्या ना हो, यहां आकर पता चला कि किरपा की हालत नाजुक है और डॉक्टरों ने उसे उदयपुर रैफर कर दिया।
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