
बुधवार काे सुबह 10 बजे सूचना मिली कि पुंदाग में सैकड़ाें लड़के-लड़कियां बाहर से आकर फंसे हैं। उन्हें काफी दिक्कत हाे रही है। बिना देर किए उनका लोकेशन ट्रेस करके आईएसएम चाैक से आगे एक गली में स्थित उनके घर पहुंचा। दरवाजा खटखटाने पर गिरिडीह निवासी चंदन बाहर निकलता है। डरते-डरते उसने आने का कारण पूछा, जब उसे तसल्ली हाे गई कि हम मीडिया से हैं तब वह हमे घर के अंदर ले जाता है। घर के अंदर जाने पर वहां का दृश्य देखकर मैं कुछ पूछ ही नहीं पाया। क्योंकि एक ही कमरे में मौजूद 12-15 लड़काें में काेई जैसे-तैसे साेया हुआ है ताे काेई दीवार के सहारे बैठकर अपने मोबाइल में व्यस्त।
कैमरा की लाइट चमकते ही कुछ लड़के उठ बैठते हैं। पूछने पर मध्यप्रदेश सतना के रहने वाले स्वास्तिक पयासी ने बताया कि वह 15 मार्च काे रांची आया था। ग्लेज ट्रेडिंग इंडिया कंपनी का प्रोडक्ट बेचने का काम करता है। एक सप्ताह बाद ही लाॅकडाउन हाे गया। क्या पता था कि ऐसा फंसेंगे कि एक समय का खाना भी नहीं मिलेगा। तभी बात करते-करते सतना के ही मनीष द्विवेदी के आंखाें में आंसू आ गए। कहा रोजगार की तलाश में बाहर के हजाराें साथी यहां आए हैं, सभी फंस गए।
17 दिन किसी तरह कट गए अब पैसे भी खत्म हाे गए और खाने की सामग्री भी। दाे दिन ताे बिस्कुट-मिक्चर खाकर रह गए अब बर्दाश्त नहीं हाेता। इसी बीच भुवनेश्वर निवासी दीवाकर रूआंसा हाेकर कहता है... सर, हमलोगों का किसी तरह घर जाने की व्यवस्था करा दीजिए। वापस जाने तक के पैसा नहीं हैं। घर वाले परेशान हैं।
पढ़ाई-मजदूरी के लिए आई लड़कियों की स्थिति भी बेहद खराब
पुंदाग क्षेत्र में ही किराए के मकान में रहने वाली लड़कियां मिलीं। करीब 20 लड़कियां दाे कमरे में रहती हैं। राज्य के विभिन्न जिले से आकर वे यहां पढ़ाई करती हैं और पाॅकेट खर्च के लिए पार्ट टाइम जाॅब भी। इसी तरह पलामू, गुमला, खूंटी से आकर रांची में मजदूरी करने वाली सैकड़ाें लड़की-महिलाएं यहां फंस गई हैं। इधर, लड़के बोले- पैसे नहीं हाेने से एक ही रूम में आठ-दस लाेग रह रहे हैं, ताकि किराया बचाकर राशन की व्यवस्था कर सकें।
पार्षदों के भरोसे... पुंदाग, चुटिया, हरमू में फंसे मजदूरों को नहीं मिली राहत सामग्री
पुंदाग, कटहल माेड़, चुटिया, डाेरंडा, किशाेरगंज, पिस्कामोड़ क्षेत्र में किराए के मकान में रहने वाले हजाराें लाेगाें के पास अब खाना बनाने के लिए अनाज नहीं है और न पाॅकेट में पैसे। जिला प्रशासन की राहत भी ऐसे लाेगाें तक नहीं पहुंच रही है। क्योंकि प्रशासन ने ऐसा काेई मैकेनिज्म ही विकसित नहीं किया है। पार्षदों के भराेसे जरूरतमंदों काे छाेड़ दिया है, लेकिन पार्षदों काे भी पर्याप्त सामग्री उपलब्ध नहीं कराई गई है।
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