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गुरुवार, 9 अप्रैल 2020

मरीज और क्वारैंटाइन लोगों से हर दिन 100 किलो कचरा निकल रहा, छह लोगों की टीम इसे 1 हजार डिग्री पर जलाकर खत्म कर रही


(अमिताभ अरुण दुबे) इसवक्त पूरा देश कोरोनावायरस के संक्रमण की दहशत से जूझ रहा है। दूसरी तरफ संभवत: यह पहली खबर और तस्वीर है,जिसमें हम बता रहे हैं कि कोरोना के मरीजों और क्वारैंटाइन लोगों से जो कुछ भी संक्रमित कचरा (मेडिकल वेस्ट) निकल रहा है, उसका क्या किया जा रहा है। जिस तरह डाक्टर-नर्सों और पैरामेडिकल स्टाफ की टीम जान जोखिम में डालकर कोरोना मरीजों का इलाज कर रही है, उससे कहीं ज्यादा जोखिम छह लोगों की उस टीम को है, जो इनका संक्रमित कचरा उठा रही है।उसे इकट्ठा कर रोजाना पूरी सतर्कता से नष्ट कर रही है। राजधानी के एम्स में कोरोना मरीजों औरसरकारी क्वारैंटाइन सेंटरों के अलावा होम आइसोलेशन वाले कुछ लोग भी अपना कचरा अलग कर रहे हैं। फिलहाल हर दिन करीब 100 किलो कचरा निकल रहा है। इसे यही टीम एक खास भट्ठी में 1000 डिग्री तापमान पर जलाकर नष्ट कर रही है और सिर्फ राख ही बच रही है।

यह दरअसल मेडिकल वेस्ट ही है, लेकिन इस वक्त कोरोना का वेस्ट सबसे हाई रिस्क है। इसे नष्ट करने के लिए पर्यावरण प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड ने एक खास गाइडलाइंस भी बनाई है, जिसके अनुरूप ही इसको डिस्पोज किया जाता है। दरअसल, कोरोना कचरा इतना सेंसेटिव माना जा रहा है कि इसके कलेक्शन प्वाइंट से लेकर प्रोसेसिंग प्लांट में अगर किसी तरह की छोटी सी चूक भी हो जाए, तो शहर का बड़ा हिस्सा संक्रमण की जद में आ सकता है। लिहाजा इसके लिए खास तरह के प्रोटोकॉल भी बनाए गए हैं। भास्कर पहली बार इस पूरी प्रक्रिया की आंखों देखी आपको बता रहा है।

कलेक्शन प्वाइंट तक कचरा लेने केवल जाता है ड्राइवर

शहर में गोपनीय जगह पर बनाए गए कलेक्शन प्वाइंट से इन सभी पीले बैग को प्रोसेसिंग प्लांट तक लाने के लिए एक विशेष गाड़ी जाती है। इस गाड़ी को दिन में तीन से चार बार सैनिटाइज किया जाता है। गाड़ी में पूरे प्रोटेक्शन किट पहने हुए केवल ड्रायवर ही होता है। यही गाड़ी सीधे एम्स अस्पताल तक जाकर वहां के कोरोना वेस्ट को कलेक्ट करती है। अस्पताल का कोरोना वेस्ट शहर में कलेक्शन प्वाइंट पर नहीं लाया जाता है। इसमें संक्रमण का खतरा कई गुना तक होता है। ड्रायवर इस कचरे को लेने जिस पीपीई किट को पहनकर जाता है, प्लांट पर आने के बाद उसे फौरन किट उतराना होता है। ये किट भी अलग पीले बैग में अलग रखी जाती है। गाड़ी और ड्रायवर को अच्छी तरह सैनिटाइज किया जाता है।

एक हजार डिग्री पर कचरे को जलातीहै पांच-छह लोगों की टीम

शहर से दूर चाक चौबंद सुरक्षा के बीच सिलतरा के प्रोसेसिंग प्लांट तक कोरोना कचरे को पहुंचाने के बाद ड्रायवर का काम खत्म हो जाता है। इसके बाद प्रोसेसिंग टीम इसकी प्रक्रिया शुरू करती है। प्रोसेसिंग के लिए पांच से छह लोगों की एक अलग टीम है। इस टीम के सदस्यों को भी प्रोटेक्शन किट पहनना पड़ता है। इसके बाद दिनभर कलेक्ट होकर आया कोरोना कूड़ा तीन से चार बार बैग के ऊपर से सैनिटाइज किया जाता है। फिर इस कचरे को वेट मशीन में डाला जाता है। जहां दिन के कचरे का वजन किया जाता है। फिर ट्रालियों से इसे बिजली की भट्टी तक पहुंचाया जाता है। जहां एक हजार डिग्री पर इसे प्रोटोकॉल के मुताबिक, जलाकर खत्म कर दिया जाता है। ये इतना अधिक तापमान होता है कि वायरस पूरी तरह नष्ट हो जाता है, इसलिए राख में किसी तरह का जोखिम नहीं रहता है।

प्रोसेसिंग टीम की किट भीहर दिन जला दी जाती है

इस काम को करने वाली प्रोसेसिंग टीम के सभी सदस्यों की प्रोटेक्शन किट को भी प्रक्रिया पूरी होने के बाद सैनिटाइज कर जला दिया जाता है। हर दिन टीम को नई किट पहनी पड़ती है। किट की किल्लत न हो इसके लिए इस काम को करने वाली एजेंसी ने पूरा स्टॉक भी रखा है। रायपुर के अलावा दुर्ग, भिलाई जैसे आसपास के शहरों से भी आने वाला कोरोना वेस्ट यही प्रोसेस किया जाता है। इस काम को करने वाली टीम का रूटीन हेल्थ चैकअप भी होता हैताकि अगर किसी वजह से संक्रमण हो तो वक्त रहते उसे ठीक किया जा सके। इतना ही नहीं, पूरी टीम का एक ट्रैकिंग सिस्टम भी बनाया गया है। वो कहां जाते हैं, किन लोगों के बीच रहते हैं, इसको भी रूटीन में बारीकी से मॉनिटर किया जाता है। प्लांट से निकलने से पहले इनकी गाड़ियों और इनको अच्छी तरह सैनिटाइज भी करते हैं। प्रदेश में ये पूरा काम प्रदूषण नियंत्रण कंट्रोल बोर्ड की देखरेख में हो रहा है। एहतियातन इस पूरे काम को करने वाली टीम के सदस्यों के नाम और व्यक्तिगत सूचनाएं भास्कर इस रिपोर्ट में गोपनीय ही रख रहा है।

शहर में एक विशेष प्वाइंट से कलेक्ट होता है कचरा

कोरोना संदिग्धों और क्वारैंटाइन सेंटर से पीले बैग में कोरोना वेस्ट को शहर में एक स्थान पर हर दिन डंप किया जाता है। सुरक्षा कारणों से उस विशेष स्थान का जिक्र यहां नहीं किया जा रहा है। इसमें कोरोना संदिग्ध के हाथों से गुजरा हर तरह का कचरा होता है, इसमें उसके द्वारा इस्तेमाल किए खाद्य पदार्थों जैसे चिप्स बिस्किट के खाली रैपर तक होते हैं। इसके अलावा टीशू पेपर, मास्क, कॉटन, शेविंग ब्लेड, सौंदर्य प्रसाधन, नाखून वगैरह भी इसी पीले बैग में रखा जाता है। इस बैग को अच्छी तरह पैक करने की जिम्मेदारी भी संदिग्ध पर ही होती है। इसके बाद डोर टू डोर कलेक्शन वाली टीम इस बैग को अलग से जाकर कलेक्ट कर कलेक्शन प्वाइंट पर लाकर डंप करती है।

कोरोना कचरे की प्रोसेसिंग हाई रिस्क टास्क

छत्तीसगढ़कीयूनिट हेड-प्रोसेसिंग एजेंसीमलय सेनगुप्ता ने बताया किकोरोना कचरे की प्रोसेसिंग हाई रिस्क टास्क है। इसमें बहुत सावधानियों की जरूरत है। संदिग्धों की तादाद बढ़ने पर ये मात्रा और भी बढ़ सकती है। पेशेंट जो ठीक होकर घर पहुंच गए हैं, उनका कचरा भी यही टीम डिस्पोज कर रही है।
कोरोना वेस्ट को प्रोसेस करने वाली टीम। मेडिकल वेस्ट प्रोसेसिंग एजेंसी के यूनिट हेड मलय सेनगुप्ता ने बताया कि कोरोना कचरे की प्रोसेसिंग हाई रिस्क टास्क है। इसमें बहुत सावधानियों की जरूरत है।

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